हिन्दू धर्म के ऐसे रहस्य, जो अनसुलझे हैं –

हिन्दू धर्म या कहें कि भारतीय संस्कृति में प्रचलित और ग्रंथों में उल्लेखित भारत के 29 ऐसे रहस्य हैं, जो अभी तक अनसुलझे हुए हैं और संभवत: उनमें से कुछ का रहस्य मानव कभी नहीं जान पाएगा।
प्राचीन सभ्यताओं, धर्म, समाज और संस्कृतियों का महान देश भारत वैसे भी रहस्य और रोमांच के लिए जाना जाता है। एक ओर जहां भारत में दुनिया की प्रथम भाषा संस्कृत का जन्म हुआ तो दूसरी ओर दुनिया का प्रथम ग्रंथ ऋग्वेद लिखा गया। एक और जहां दुनिया की प्रथम लिपि ब्राह्मी लिपि का जन्म हुआ तो दूसरी ओर दुनिया के प्रथम विश्वविद्यालय नालंदा और तक्षशिला की स्थापना हुई।
प्राचीन भारत में एक ओर जहां अगस्त्य मुनि ने बिजली का आविष्कार किया था तो हजारों वर्ष पूर्व ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र लिखकर यह बताया था कि किस तरह विमान बनाए जा सकते हैं। गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत जहां भास्कराचार्य ने ईजाद किया था तो वहीं कणाद ऋषि को परमाणु सिद्धांत का जनक माना गया है। एक ओर जहां सांप-सीढ़ी का खेल भारत में जन्मा दो दूसरी ओर शतरंज का आविष्कार भी भारत में ही हुआ। आचार्य चरक और सुश्रुत को श्रेय जाता है प्लास्टिक सर्जरी चिकित्सा की खोज का। पाणिणी ने दुनिया का पहला व्याकरण लिखा था। ज्यामिति, पाई का मान, रिलेटिविटी का सिद्धांत जैसे कई सिद्धांत और आविष्कार हैं, जो भारत ने गढ़े हैं। लेकिन हम उक्त सबसे हटकर कुछ ऐसे 29 रहस्य बताने वाले हैं, जो अब तक अनसुलझे हैं।
ऋषि कश्यप और उनकी पत्नियों के पुत्रों का रहस्य : कहते हैं कि धरती के प्रारंभिक काल में धरती एक द्वीप वाली थी, फिर वह दो द्वीप वाली बनी और अंत में सात द्वीपों वाली बन गई। कहते हैं कि प्रारंभिक काल में ब्रह्मा ने समुद्र में और धरती पर तरह-तरह के जीवों की उत्पत्ति की। उत्पत्ति के इस काल में उन्होंने अपने कई मानस पुत्रों को भी जन्म दिया। उन्हीं में से एक थे मरीची। ऋषि कश्यप ब्रह्माजी के मानस पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे।
मान्यता के अनुसार इन्हें अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। इनकी माता ‘कला’ कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी। यहां रहस्य वाली बात यह कि क्या कोई इंसान सर्प, पक्षी, पशु आदि तरह की जातियों को जन्म दे सकता है? हालांकि जीव विकासवादियों को इस पर शोध करना चाहिए। क्या मनुष्य और पशुओं के संयोग से कोई एक नई प्रजाति को जन्म देना संभव है। भगवान विष्णु सदा एक गरूड़ पर सवार रहते थे। ये गरूड़जी कश्यप की पत्नी विनीता से जन्मे थे।
यूं तो कश्यप ऋषि की कई पत्नियां थीं लेकिन प्रमुख रूप से 17 का हम उल्लेख करना चाहेंगे- 1. अदिति, 2. दिति, 3. दनु, 4. काष्ठा, 5. अरिष्टा, 6. सुरसा, 7. इला, 8. मुनि, 9. क्रोधवशा, 10. ताम्रा, 11. सुरभि, 12. सुरसा, 13. तिमि, 14. विनीता, 15. कद्रू, 16. पतांगी और 17. यामिनी आदि पत्नियां बनीं।
1. अदिति से 12 आदित्यों का जन्म हुआ- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। ये सभी देवता कहलाए और इनका स्थान हिमालय के उत्तर में था।
2. दिति से कई पुत्रों का जन्म हुआ – कश्यप ऋषि ने दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक 2 पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री को जन्म दिया। ये दैत्य कहलाए और इनका स्थान हिमालय के ‍दक्षिण में था। श्रीमद्भागवत के अनुसार इन 3 संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जो कि मरुन्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र नि:संतान रहे जबकि हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद।
3. दनु : ऋषि कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरुण, अनुतापन, धूम्रकेश, विरुपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि 61 महान पुत्रों की प्राप्ति हुई। ये सभी दानव कहलाए।
4. अन्य पत्नियां : रानी काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए। पत्नी अरिष्टा से गंधर्व पैदा हुए। सुरसा नामक रानी से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए। इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ। मुनि के गर्भ से अप्सराएं जन्मीं। कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने सांप, बिच्छू आदि विषैले जंतु पैदा किए।
ताम्रा ने बाज, गिद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपनी संतान के रूप में जन्म दिया। सुरभि ने भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति की। रानी सरसा ने बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया। तिमि ने जलचर जंतुओं को अपनी संतान के रूप में उत्पन्न किया।
रानी विनीता के गर्भ से गरूड़ (विष्णु का वाहन) और वरुण (सूर्य का सारथि) पैदा हुए। कद्रू की कोख से बहुत से नागों की उत्पत्ति हुई जिनमें प्रमुख 8 नाग थे- अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक।
रानी पतंगी से पक्षियों का जन्म हुआ। यामिनी के गर्भ से शलभों (पतंगों) का जन्म हुआ। ब्रह्माजी की आज्ञा से प्रजापति कश्यप ने वैश्वानर की 2 पुत्रियों पुलोमा और कालका के साथ भी विवाह किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के 60 हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ, जो कि कालांतर में निवात कवच के नाम से विख्यात हुए।
10 फन, उड़ने वाले, मणिधर और इच्छाधारी सांप होते हैं? सभी जीव-जंतुओं में गाय के बाद सांप ही एक ऐसा जीव है जिसका हिन्दू धर्म में ऊंचा स्थान है। सांप एक रहस्यमय प्राणी है। देशभर के गांवों में आज भी लोगों के शरीर में नाग देवता की सवारी आती है।
शिव के प्रमुख गणों में सांप भी है। भारत में नाग जातियों का लंबा इतिहास रहा है। कहते हैं कि कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने सांप, बिच्छू आदि विषैले जंतु पैदा किए। अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक और पिंगला- उक्त 5 नागों के कुल के लोगों का ही भारत में वर्चस्व था। ये सभी कश्यप वंशी थे, लेकिन इन्हीं से नागवंश चला। शेषनाग को 10 फन वाला माना गया है। भगवान विष्णु उन पर ही लेटे हुए दर्शाए गए हैं।
उड़ने वाला और इच्छाधारी नाग : माना जाता है कि 100 वर्ष से ज्यादा उम्र होने के बाद सर्प में उड़ने की शक्ति आ जाती है। सर्प कई प्रकार के होते हैं- मणिधारी, इच्‍छाधारी, उड़ने वाले, एकफनी से लेकर दसफनी तक के सांप, जिसे शेषनाग कहते हैं। नीलमणिधारी सांप को सबसे उत्तम माना जाता है। इच्छाधारी नाग के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी इच्छा से मानव, पशु या अन्य किसी भी जीव के समान रूप धारण कर सकता है।
हालांकि वैज्ञानिक अब अपने शोध के आधार पर कहने लगे हैं कि सांप विश्व का सबसे रहस्यमय प्राणी है और दक्षिण एशिया के वर्षा वनों में उड़ने वाले सांप पाए जाते हैं। उड़ने में सक्षम इन सांपों को क्रोसोपेलिया जाति से संबंधित माना जाता है। वैज्ञानिकों ने 2 और 5 फन वाले सांपों के होने की पुष्‍टि की है लेकिन 10 फन वाले सांप अभी तक नहीं देखे गए हैं।
क्या पारसमणि होती है ? मणि एक प्रकार का चमकता हुआ पत्थर होता है। मणि को हीरे की श्रेणी में रखा जा सकता है। मणि होती थी यह भी अपने आप में एक रहस्य है। जिसके भी पास मणि होती थी वह कुछ भी कर सकता था। ज्ञात हो कि अश्वत्थामा के पास मणि थी जिसके बल पर वह शक्तिशाली और अमर हो गया था। रावण ने कुबेर से चंद्रकांत नाम की मणि छीन ली मान्यता है कि मणियां कई प्रकार की होती थीं। नीलमणि, चंद्रकांत मणि, शेष मणि, कौस्तुभ मणि, पारसमणि, लाल मणि आदि। पारसमणि से लोहे की किसी भी चीज को छुआ देने से वह सोने की बन जाती थी। कहते हैं कि कौवों को इसकी पहचान होती है और यह हिमालय के पास पास ही पाई जाती है।
मणियों के महत्व के कारण ही तो भारत के एक राज्य का नाम मणिपुर है। शरीर में स्थित 7चक्रों में से एक मणिपुर चक्र भी होता है। मणि से संबंधित कई कहानी और कथाएं समाज में प्रचलित हैं। इसके अलावा पौराणिक ग्रंथों में भी ‍मणि के किस्से भरे पड़े हैं।
संजीवनी बूटी का रहस्य अभी भी बरकरार : शुक्राचार्य को मृत संजीवनी विद्या याद थी जिसके दम पर वे युद्ध में मारे गए दैत्यों को फिर से जीवित कर देते थे। इस विद्या को सीखने के लिए गुरु बृहस्पति ने अपने एक शिष्य को शुक्राचार्य का शिष्य बनने के लिए भेजा। उसने यह विद्या सीख ली थी लेकिन शुक्राचार्य और उनके दैत्यों को इसका जब पता चला तो उन्होंने उसका वध कर दिया।
रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब राम-रावण युद्ध में मेघनाथ आदि के भयंकर अस्त्र प्रयोग से समूची राम सेना मरणासन्न हो गई थी, तब हनुमानजी ने जामवंत के कहने पर वैद्यराज सुषेण को बुलाया और फिर सुषेण ने कहा कि आप द्रोणगिरि पर्वत पर जाकर 4 वनस्पतियां लाएं : मृत संजीवनी (मरे हुए को जिलाने वाली), विशाल्यकरणी (तीर निकालने वाली), संधानकरणी (त्वचा को स्वस्थ करने वाली) तथा सवर्ण्यकरणी (त्वचा का रंग बहाल करने वाली)। हनुमान बेशुमार वनस्पतियों में से इन्हें पहचान नहीं पाए, तो पूरा पर्वत ही उठा लाए। इस प्रकार लक्ष्मण को मृत्यु के मुख से खींचकर जीवनदान दिया गया।
इन 4 वनस्पतियों में से मृत संजीवनी (या सिर्फ संजीवनी कहें) सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके बारे में कहा जाता है कि यह व्यक्ति को मृत्युशैया से पुनः स्वस्थ कर सकती है। सवाल यह है कि यह चमत्कारिक पौधा कौन-सा है! इस बारे में कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बेंगलुरु और वानिकी महाविद्यालय, सिरसी के डॉ. केएन गणेशैया, डॉ. आर. वासुदेव तथा डॉ. आर. उमाशंकर ने बेहद व्यवस्थित ढंग से इस पर शोध कर 2 पौधों को चिह्नित किया है।
उन्होंने सबसे पहले तो भारतभर में विभिन्न भाषाओं और बोलियों में उपलब्ध रामायण के सारे संस्करणों को देखा कि क्या इन सबमें ऐसे पौधे का जिक्र मिलता है जिसका नाम संजीवनी या इससे मिलता-जुलता हो। उन्होंने भारतीय जैव अनुसंधान डेटाबेस लायब्रेरी में 80 भाषाओं व बोलियों में अधिकांश भारतीय पौधों के बोलचाल के नामों की खोज की। उन्होंने ‘संजीवनी’ या उसके पर्यायवाचियों और मिलते-जुलते शब्दों की खोज की। नतीजा? खोज में 17 प्रजातियों के नाम सामने आए। जब विभिन्न भाषाओं में इन शब्दों के उपयोग की तुलना की गई, तो मात्र 6 प्रजातियां शेष रह गईं।
इन 6 में से भी 3 प्रजातियां ऐसी थीं, जो ‘संजीवनी’ या उससे मिलते-जुलते शब्द से सर्वाधिक बार और सबसे ज्यादा एकरूपता से मेल खाती थी : क्रेसा क्रेटिका, सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस और डेस्मोट्रायकम फिम्ब्रिएटम। इनके सामान्य नाम क्रमशः रुदन्ती, संजीवनी बूटी और जीवका हैं। इन्हीं में से एक का चुनाव करना था। अगला सवाल यह था कि इनमें से कौन-सी पर्वतीय इलाके में पाई जाती है, जहां हनुमान ने इसे तलाशा होगा। क्रेसा क्रेटिका नहीं हो सकती, क्योंकि यह दखन के पठार या नीची भूमि में पाई जाती है।
अब शेष बची 2 वनस्पतियां : अब शोधकर्ताओं ने सोचा कि वे कौन-से मापदंड रहे होंगे जिनका उपयोग रामायण काल के चिकित्सक औषधीय तत्व के रूप में करते होंगे। प्राचीन भारतीय पारंपरिक चिकित्सक इस सिद्धांत पर अमल करते थे कि जिस पौधे की बनावट प्रभावित अंग या शरीर के समान हो, वह उससे संबंधित रोग का उपचार कर सकता है।
सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस कई महीनों तक एकदम सूखी या ‘मृत’ पड़ी रहती है और एक बारिश आते ही ‘पुनर्जीवित’ हो उठती है। डॉ. एनके शाह, डॉ. शर्मिष्ठा बनर्जी और सैयद हुसैन ने इस पर कुछ प्रयोग किए हैं और पाया है कि इसमें कुछ ऐसे अणु पाए जाते हैं, जो ऑक्सीकारक क्षति व पराबैंगनी क्षति से चूहों और कीटों की कोशिकाओं की रक्षा करते हैं तथा उनकी मरम्मत में मदद करते हैं। तो क्या सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस ही रामायण काल की संजीवनी बूटी है?
सच्चे वैज्ञानिकों की भांति गणेशैया व उनके साथी जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहते। उनका कहना है कि दूसरे पौधे डेस्मोट्रायकम फिम्ब्रिएटम का दावा भी कमतर नहीं है। अब इन दो प्रजातियों के बीच फैसला करने के लिए और शोध की जरूरत है। इसके संपन्न होते ही रामायणकालीन संजीवनी बूटी शायद हमारे सामने होगी।
एक अन्य खोज : भारतीय वैज्ञानिकों ने हिमालय के ऊपरी इलाके में एक अनोखे पौधे की खोज की है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह पौधा एक ऐसी औषधि के रूप में काम करता है, जो हमारे इम्यून सिस्टम को रेग्युलेट करता है। हमारे शरीर को पर्वतीय परिस्थितियों के अनुरूप ढलने में मदद करता है और हमें रेडियो एक्टिविटी से भी बचाता है।
यह खोज सोचने पर मजबूर करती है कि क्या रामायण की कहानी में लक्ष्मण की जान बचाने वाली जिस संजीवनी बूटी का जिक्र किया गया है, वह हमें मिल गई है? रोडिओला नाम की यह बूटी ठंडे और ऊंचे वातावरण में मिलती है। लद्दाख में स्थानीय लोग इसे सोलो के नाम से जानते हैं।
अब तक रोडिओला के उपयोगों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। स्थानीय लोग इसके पत्तों का उपयोग सब्जी के रूप में करते आए हैं। लेह स्थित डिफेंस इंस्टिट्यूट ऑफ हाई एल्टिट्यूड इस पौधे के चिकित्सकीय उपयोगों की खोज कर रहा है। यह सियाचिन जैसी कठिन परिस्थितियों में तैनात सैनिकों के लिए बहुत उपयोगी हो सकता है।
वानर प्रजाति : क्या सचमुच रामायण काल में बताए गए अनुसार जामवंत एक रीछ थे और हनुमानजी एक वानर? हालांकि आज भी यह रहस्य बरकरार है। यदि बजरंग बली वानर नहीं होते तो उनको रामायण और रामचरित मानस में कपि, वानर, शाखामृग, प्लवंगम, लोमश और पुच्छधारी कहकर नहीं पुकारा जाता। लंकादहन का वर्णन भी फिर पूंछ से जुड़ा हुआ नहीं होता।
हालांकि कहा जाता है कि कपि नामक एक वानर जाति थी। हनुमानजी उसी जाति के ब्राह्मण थे। हनुमान चालीसा की एक पंक्ति है: को नहि जानत है जग में, ‘कपि’ संकटमोचन नाम तिहारो।।
कुछ लोग कपि को चिंपांजी के रूप में देखते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार ‘कपि प्रजाति’ होमिनोइडेया नामक महापरिवार प्राणी जगत की सदस्य जीव जातियों में से एक थी। जीव विज्ञानी कहते हैं कि होमिनोइडेया नामक महापरिवार के प्राणी जगत की 2 प्रमुख जाति शाखाएं थीं जिसमें से प्रथम को ‘हीन कपि’ कहा जाता था और दूसरी को महाकपि कहा जाता था। हीन कपि अर्थात छोटे कपि और महाकपि अर्थात बड़े आकार के मानवनुमा कपि। महाकपियों की 4 उपशाखाएं हैं- गोरिल्ला, चिंपांजी, मनुष्य तथा ओरंगउटान।
शोधकर्ताओं के अनुसार भारतवर्ष में आज से 9 से 10 लाख वर्ष पूर्व बंदरों की एक ऐसी विलक्षण जाति में विद्यमान थी, जो आज से लगभग 15 हजार वर्ष पूर्व विलुप्त होने लगी थी और रामायण काल के बाद लगभग विलुप्त ही हो गई। इस वानर जाति का नाम ‘कपि’ था। मानवनुमा यह प्रजाति मुख और पूंछ से बंदर जैसी नजर आती थी। भारत से दुर्भाग्यवश कपि प्रजाति समाप्त हो गई, लेकिन कहा जाता है कि इंडोनेशिया देश के बाली नामक द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है।
भौतिक मानव विज्ञानी सिकर्क ने इस बात की घोषणा की है कि उन्हें पश्चिम टेक्सास के एक कब्रिस्तान में नर वानर प्रजाति के नए जीवाश्म प्राप्त हुए हैं। उनका कहना है कि ये जीवाश्म 43 मिलियन वर्ष पहले के हो सकते हैं और वर्तमान में इनकी तुलना उत्तरी गोलार्ध में पाए जाने वाले मेस्केलोलीमर से की जा सकती है, लेकिन अब मेस्केलोलीमर एक विलुप्त नर वानर समूह है।
हालांकि 1973 में एक जीवाश्म प्राप्त हुआ था जिसकी तुलना इससे की जा रही है। इसके साथ ही माना जा रहा है कि इसका संबंध यूरेशियन और अफ्रीकी प्रजातियों से भी हो सकता है। इससे प्रजातियों के अंत के संबंध में मिल सकती है जानकारी।
टेक्सास विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत सिकर्क का इस संबंध में कहना है कि इन जीवाश्मों का संबंध इयोसिन नर वानर समुदाय से भी हो सकता है। यह प्रजाति समय के साथ-साथ धीरे-धीरे विलुप्त हो गई और सबसे पहले ये उत्तरी अमेरिका में समाप्त हुई।
यह जानकारी इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उत्तरी अमेरिका और पूर्वी एशिया के बीच फ्यूनल विनिमय के सबूत भी पाए गए हैं। कर्क ने बताया कि यह जीवाश्म अनुकूलित प्रजातियों के अंत के संबंध में बहुत कुछ जानकारी दे सकते हैं, क्योंकि यह अमेरिका में उस समय कितनी विविधता थी इस बात के जीते- जागते उदाहरण थे।
क्या हजारों वर्षों तक जीवित रहा जा सकता है? पौराणिक और संस्कृत ग्रंथों के अनुसार भारत में ऐसे कई लोग हैं, जो हजारों वर्षों से ‍जीवित हैं। हिमालय में आज भी ऐसे कई ऋषि और मुनि हैं जिनकी आयु लगभग 600 वर्ष से अधिक बताई जाती है।
श्लोक : अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:।।
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थात इन 8 लोगों (अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि) का स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है। अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम- ये सभी चिरंजीवी हैं।
पुराणों के अनुसार अश्‍वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि के अलावा अन्य कई ऐसे लोग हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वे आज भी जीवित हैं। यह संभव है कि कोई व्यक्ति हजारों वर्ष तक जीवित रह सकता है। आयुर्वेदानुसार मनुष्य की आयु लगभग 120 वर्ष बताई गई है लेकिन वह अपने योगबल से लगभग 150 वर्षों से ज्यादा जी सकता है। कहते हैं कि प्राचीन मानव की सामान्य उम्र 300 से 400 वर्ष हुआ करती थी, क्योंकि तब धरती का वातावरण व्यक्ति को उक्त काल तक जिंदा बनाए रखने के लिए था।
कौरवों का जन्म एक रहस्य : कौरवों को कौन नहीं जानता? धृतराष्ट्र और गांधारी के 99 पुत्र और 1 पुत्री थीं जिन्हें कौरव कहा जाता था। कुरु वंश के होने के कारण ये कौरव कहलाए। सभी कौरवों में दुर्योधन सबसे बड़ा था। गांधारी जब गर्भवती थी, तब धृतराष्ट्र ने एक दासी के साथ सहवास किया था जिसके चलते युयुत्सु नामक पुत्र का जन्म हुआ। इस तरह कौरव 100 हो गए। युयुत्सु ऐनवक्त पर कौरवों की सेना को छोड़कर पांडवों की सेना में शामिल हो गया था।
गांधारी ने वेदव्यास से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर किया। गर्भधारण कर लेने के पश्चात भी 2 वर्ष व्यतीत हो गए, किंतु गांधारी के कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हुई। इस पर क्रोधवश गांधारी ने अपने पेट पर जोर से मुक्के का प्रहार किया जिससे उसका गर्भ गिर गया।
वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल ही जान लिया। वे गांधारी के पास आकर बोले- ‘गांधारी! तूने बहुत गलत किया। मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र ही 100 कुंड तैयार करवाओ और उनमें घृत (घी) भरवा दो।’
वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांस पिंड पर अभिमंत्रित जल छिड़का जिससे उस पिंड के अंगूठे के पोरुये के बराबर 100 टुकड़े हो गए। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गांधारी के बनवाए हुए 100 कुंडों में रखवा दिया और उन कुंडों को 2 वर्ष पश्चात खोलने का आदेश देकर अपने आश्रम चले गए। 2 वर्ष बाद सबसे पहले कुंड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई। फिर उन कुंडों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं दु:शला नामक 1 कन्या का जन्म हुआ।
अब सवाल उठता है कि क्या ऐसा हुआ था? ऐसा कैसे संभव है? आजकल टेस्ट ट्यूब बेबी के बारे में जरूर सुनते हैं लेकिन 99 पुत्रों का एकसाथ जन्म सचमुच एक रहस्य ही है।
क्या इच्छामृत्यु प्राप्त की जा सकती है? भीष्म पितामह के बारे में कहा जाता है कि उनको इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था।
पुराणों के अनुसार ब्रह्माजी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध और बुध से इलानंदन पुरुरवा का जन्म हुआ। पुरुरवा से आयु, आयु से राजा नहुष और नहुष से ययाति उत्पन्न हुए। ययाति से पुरु हुए। पुरु के वंश में भरत और भरत के कुल में राजा कुरु हुए। कुरु के वंश में आगे चलकर राजा प्रतीप हुए जिनके दूसरे पुत्र थे शांतनु। शांतनु का बड़ा भाई बचपन में ही शांत हो गया था। शांतनु के गंगा से देवव्रत (भीष्म) हुए। भीष्म ने ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ली थी इसलिए यह वंश आगे नहीं चल सका। भीष्म अंतिम कौरव थे।
सिंधु, सरस्वती, गंगा, नर्मदा और ब्रह्मपुत्र : उक्त 5 नदियों को भारत और विशेषकर हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। उक्त पांचों नदियों का जल एक-दूसरे से अलग है लेकिन उनमें से नर्मदा नदी को छोड़कर बाकी नदियां हिमालय के एक ही स्थान से निकलने वाली नदियां हैं। नर्मदा एकमात्र ऐसी नदी है, जो सभी नदियों की अपेक्षा विपरीत दिशा में बहती है और इसे पाताल की नदी कहते हैं।
सरस्वती नदी का तो अब भूगर्भीय हलचलों के कारण अस्तित्व लुप्त हो गया और सिंधु ने अपना मार्ग बदल दिया। गंगा ने भी इस लंबे दौर में कई उतार-चढ़ाव देखे और ब्रह्मपुत्र ने भी हजारों वर्षों से लाखों लोगों की मुमुक्षा को दूर किया है। मुमुक्षा का अर्थ मोक्ष की कामना।
सरस्वती : सरस्वती नदी का तो अब भूगर्भीय हलचलों के कारण अस्तित्व लुप्त हो गया लेकिन आज भी वह राजस्थान और हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में अपने होने का अहसास दिलाती है। कहते हैं कि लगभग 18 ईसापूर्व इस नदी का अस्तित्व मिट गया। इस नदी के किनारे बैठकर ही वेद की ऋ‍चाओं का जन्म हुआ और भगवान ब्रह्मा ने अपने कई महत्वपूर्ण यज्ञ संपन्न किए। प्राचीन सभ्यताओं की जननी सरस्वती नदी आज भी एक रहस्य है उन लोगों को लिए, जो जान-बूझकर इसका अस्तित्व नहीं स्वीकारना चाहते हैं।
शोधानुसार यह सभ्यता लगभग 9,000 ईसा पूर्व अस्तित्व में आई थी और 3,000 ईसापूर्व उसने स्वर्ण युग देखा और लगभग 1800 ईसा पूर्व आते-आते यह लुप्त हो गया। कहा जाता है कि 1,800 ईसा पूर्व के आसपास किसी भयानक प्राकृतिक आपदा के कारण एक और जहां सरस्वती नदी लुप्त हो गई वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र के लोगों ने पश्‍चिम की ओर पलायन कर दिया। पुरात्ववेत्ता मेसोपोटामिया (5000-300 ईसापूर्व) को सबसे प्राचीन बताते हैं, लेकिन अभी सरस्वती सभ्यता पर शोध किए जाने की आवश्यकता है।
गंगा नदी : यह एक रहस्य ही है कि आखिरकार गंगा नदी का पानी क्यों नहीं सड़ता? हालांकि वैज्ञानिक बताते हैं कि इस नदी में 3 तरह के ऐसे बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो अन्य सभी तरह के बैक्टीरियाओं को खा जाते हैं जिसके चलते इसका पानी सड़ता नहीं है। मान्यता अनुसार यह भारत की सबसे पवित्र और रहस्यमय नदी है। इसे राम के वंशज राजा भगीरथ ने स्वर्ग से नीचे उतारा था।
गरूड़ वाहन : गरूड़ का हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है। वे पक्षियों के राजा और भगवान विष्णु के वाहन हैं। भगवान गरूड़ को कश्यप ऋषि और विनीता का पुत्र कहा गया है। विनीता दक्ष कन्या थीं। गरूड़ के बड़े भाई का नाम अरुण है, जो भगवान सूर्य के रथ का सारथी है। पक्षीराज गरूड़ को जीव विज्ञान में लेपटोटाइल्स जावानिकस कहते हैं। यह इंटरनेशनल यूनियन कंजरवेशन ऑफ नेचर की रेड लिस्ट यानी विलुप्तप्राय पक्षी की श्रेणी में है। पंचतंत्र में गरूड़ की कई कहानियां हैं।
प्राचीन मंदिरों के द्वार पर एक ओर गरूड़, तो दूसरी ओर हनुमानजी की मूर्ति आवेष्‍ठित की जाती रही है। घर में रखे मंदिर में गरूड़ घंटी और मंदिर के शिखर पर गरूड़ ध्वज होता है। गरूड़ नाम से एक व्रत भी है। गरूड़ नाम से एक पुराण भी है। भगवान गरूड़ को विनायक, गरुत्मत्, तार्क्ष्य, वैनतेय, नागान्तक, विष्णुरथ, खगेश्वर, सुपर्ण और पन्नगाशन नाम से भी जाना जाता है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर क्या कभी पक्षी मानव हुआ करते थे? पुराणों में भगवान गरूड़ के पराक्रम के बारे में कई कथाओं का वर्णन मिलता है। उन्होंने देवताओं से युद्ध करके उनसे अमृत कलश छीन लिया था। उन्होंने भगवान राम को नागपाश से मुक्त कराया था। उन्हें उनकी शक्ति पर बड़ा घमंड हो चला था लेकिन हनुमानजी ने उनका घमंड चूर-चूर कर दिया था।
गरूड़ हिन्दू धर्म के साथ ही बौद्ध धर्म में भी महत्वपूर्ण पक्षी माना गया है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार गरूड़ को सुपर्ण (अच्छे पंख वाला) कहा गया है। जातक कथाओं में भी गरूड़ के बारे में कई कहानियां हैं। गुप्त काल के शासकों का प्रतीक चिह्न भी गरूड़ ही था। कर्नाटक के होयसल शासकों का भी प्रतीक गरूड़ था। अमेरिका और इंडोनेशिया का राष्ट्रीय प्रतीक गरूड़ है।
चेन्नई से 60 किलोमीटर दूर एक तीर्थस्थल है जिसे ‘पक्षी तीर्थ’ कहा जाता है। यह तीर्थस्थल वेदगिरि पर्वत के ऊपर है। कई सदियों से दोपहर के वक्त गरूड़ का जोड़ा सुदूर आकाश से उतर आता है और फिर मंदिर के पुजारी द्वारा दिए गए खाद्यान्न को ग्रहण करके आकाश में लौट जाता है।
सैकड़ों लोग उनका दर्शन करने के लिए वहां पहले से ही उपस्थित रहते हैं। वहां के पुजारी के मुताबिक सतयुग में ब्रह्मा के 8 मानसपुत्र शिव के शाप से गरूड़ बन गए थे। उनमें से 2 सतयुग के अंत में, 2 त्रेता के अंत में, 2 द्वापर के अंत में शाप से मुक्त हो चुके हैं। कहा जाता है कि अब जो 2 बचे हैं, वे कलयुग के अंत में मुक्त होंगे।
क्या सचमुच कोई स्वर्ण बनाने की विधि है? कहते हैं कि प्राचीन भारत के लोग स्वर्ण बनाने की विधि जानते थे। वे पारद आदि को किसी विशेष मिश्रण में मिलाकर स्वर्ण बना लेते थे, लेकिन क्या यह सच है? यह आज भी एक रहस्य है। कहा तो यह भी जाता है कि हिमालय में पारस नाम का एक सफेद पत्थर पाया जाता है जिसे यदि लोहे से छुआ दो तो वह लोहा स्वर्ण में बदल जाता था। पारे, जड़ी- वनस्पतियों और रसायनों से सोने का निर्माण करने की विधि के बारे में कई ग्रंथों में उल्लेख मिलता है।
प्राचीन भारत में सोना बनाने की एक रहस्यमयी विद्या थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि इसी कारण बगैर किसी ‘खनन’ के बावजूद भारत के पास अपार मात्रा में सोना था। आखिर यह सोना आया कहां से था? मंदिरों में टनों सोना रखा रहता था। सोने के रथ बनाए जाते थे और प्राचीन राजा-महाराजा स्वर्ण आभूषणों से लदे रहते थे। कहते हैं कि बिहार की सोनगिर गुफा में लाखों टन सोना आज भी रखा हुआ है।
प्रभुदेवा, व्यलाचार्य, इन्द्रद्युम्न, रत्नघोष, नागार्जुन के बारे में कहा जाता है कि ये पारद से सोना बनाने की विधि जानते थे। कहा जाता है कि नागार्जुन द्वारा लिखित बहुत ही चर्चित ग्रंथ ‘रस रत्नाकर’ में एक जगह पर रोचक वर्णन है जिसमें शालिवाहन और वट यक्षिणी के बीच हुए संवाद से पता चलता है कि उस काल में सोना बनाया जाता था।
संवाद इस प्रकार है कि शालिवाहन यक्षिणी से कहता है- ‘हे देवी, मैंने ये स्वर्ण और रत्न तुझ पर निछावर किए, अब मुझे आदेश दो।’ शालिवाहन की बात सुनकर यक्षिणी कहती है- ‘मैं तुझसे प्रसन्न हूं। मैं तुझे वे विधियां बताऊंगी जिनको मांडव्य ने सिद्ध किया है। मैं तुम्हें ऐसे-ऐसे योग बताऊंगी जिनसे सिद्ध किए हुए पारे से तांबा और सीसा जैसी धातुएं सोने में बदल जाती हैं।’
एक किस्से के बारे में भी खूब चर्चा ‍की जाती है कि विक्रमादित्य के राज्य में रहने वाले ‘व्याडि’ नामक एक व्यक्ति ने सोना बनाने की विधा जानने के लिए अपनी सारी जिंदगी बर्बाद कर दी थी। ऐसा ही एक किस्सा तारबीज और हेमबीज का भी है। कहा जाता है कि ये वे पदार्थ हैं जिनसे कीमियागर लोग सामान्य पदार्थों से चांदी और सोने का निर्माण कर लिया करते थे। इस विद्या को ‘हेमवती विद्या’ के नाम से भी जाना जाता है।
वर्तमान युग में कहा जाता है कि पंजाब के कृष्‍णपालजी शर्मा को पारद से सोना बनाने की विधि याद थी। इसका उल्लेख 6 नवंबर सन् 1983 के ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ में मिलता है। पत्रिका के अनुसार सन् 1942 में पंजाब के कृष्णपाल शर्मा ने ऋषिकेश में पारे के द्वारा लगभग 100 तोला सोना बनाकर रख दिया था। कहते हैं कि उस समय वहां पर महात्मा गांधी, उनके सचिव महादेव भाई देसाई और युगल किशोर बिड़ला आदि उपस्थित थे। इस घटना का वर्णन बिड़ला मंदिर में लगे शिलालेख से भी मिलता है। हालांकि इस बात में कितनी सच्चाई है, यह हम नहीं जानते।
क्या ये चमत्कारिक जड़ी-बूटियां होती हैं? सिद्धि देने वाली जड़ी-बूटी : गुलतुरा (दिव्यता के लिए), तापसद्रुम (भूतादि ग्रह निवारक), शल (दरिद्रतानाशक), भोजपत्र (ग्रह बाधाएं निवारक), विष्णुकांता (शत्रुनाशक), मंगल्य (तांत्रिक क्रियानाशक), गुल्बास (दिव्यता प्रदानकर्ता), जीवक (ऐश्वर्यदायिनी), गोरोचन (वशीकरण), गुग्गल (चामंडु सिद्धि), अगस्त (पितृदोषनाशक), अपमार्ग (बाजीकरण), आंधीझाड़ा (भस्मक रोग भूख-प्यासनाशक), श्वेत अपराजिता (दरिद्रानाशक), हत्था जोड़ी (वशीकरण), समोवल्ली (मृत्यनाशक), शिलाजीत (नपुंसकतानाशक), अश्‍वगंधा (वीर्यवर्धक) आदि।
बांदा (चुम्बकीय शक्ति प्रदाता), श्‍वेत और काली गुंजा (भूत पिशाचनाशक), उटकटारी (राजयोग दाता),
तिब्बत का यमद्वार : प्राचीनकाल में तिब्बत को त्रिविष्टप कहते थे। यह अखंड भारत का ही हिस्सा हुआ करता था। तिब्बत को चीन ने अपने कब्जे में ले रखा है। तिब्बत में दारचेन से 30 मिनट की दूरी पर है यह यम का द्वार।
यम का द्वार पवित्र कैलाश पर्वत के रास्ते में पड़ता है। इसकी परिक्रमा करने के बाद ही कैलाश यात्रा शुरू होती है। हिन्दू मान्यता के अनुसार इसे मृत्यु के देवता यमराज के घर का प्रवेश द्वार माना जाता है। यह कैलाश पर्वत की परिक्रमा यात्रा के शुरुआती प्वॉइंट पर है। तिब्बती लोग इसे चोरटेन कांग नग्यी के नाम से जानते हैं जिसका मतलब होता है- दो पैर वाले स्तूप।
ऐसा कहा जाता है कि यहां रात में रुकने वाला जीवित नहीं रह पाता। ऐसी कई घटनाएं हो भी चुकी हैं, लेकिन इसके पीछे के कारणों का खुलासा आज तक नहीं हो पाया है। साथ ही यह मंदिरनुमा द्वार किसने और कब बनाया? इसका कोई प्रमाण नहीं है। ढेरों शोध हुए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका।
कहते हैं कि द्वार के इस ओर संसार है, तो उस पार मोक्षधाम। बौद्ध लामा लोग यहां आकर प्राणांत होने को मोक्ष-प्राप्ति मानते हैं इसलिए बीमार लामा अंतिम इच्छा के रूप में यहां जाते हैं और प्राण त्यागते हैं।
सम्राट अशोक के 9 रहस्यमय रत्न : 9 रत्न रखने की परंपरा की शुरुआत सम्राट अशोक और राजा  विक्रमादित्य से मानी जाती है। उनके ही अनुसार बाद के राजाओं ने भी इस परंपरा को निभाया। अकबर ने अपने दबार में 9 रत्नों की नियुक्ति की थी। कुछ लोग कहते हैं कि अशोक के साथ ऐसे 9 लोग थे, जो उनको निर्देश देते थे जिनके निर्देश और सहयोग के बल पर ही अशोक ने महान कार्यों को अंजाम दिया। ये 9 लोग कौन थे इसका रहस्य आज भी बरकरार है। क्या वे मनुष्य थे या देवता?
सम्राट अशोक को ‘देवानांप्रिय’ अशोक मौर्य सम्राट कहा जाता था। देवानांप्रिय का अर्थ देवताओं का प्रिय। ऐसी उपाधि भारत के किसी अन्य सम्राट के नाम के आगे नहीं लगाई गई। अब सवाल यह उठता है कि सम्राट अशोक के साथ वे कौन 9 लोग थे जिनके बारे में कहा जाता है कि उनमें से प्रत्येक के पास अपने-अपने ज्ञान की विशेषता थी अर्थात उनमें से प्रत्येक विशेष ज्ञान से युक्त था और अंत में सम्राट अशोक ने उनके ज्ञान को दुनिया से छुपाकर रखा। वे ही लोग थे जिन्होंने बड़े-बड़े स्तूप बनवाए और जिन्होंने विज्ञान और तकनालॉजी में भी भारत को समृद्ध बनाया। कहा जाता है कि उनके ज्ञान को एक पुस्तक के रूप से संग्रहीत किया गया था। जिस पुस्तक को किसी विशेष व्यक्ति को सुपुर्द किया गया, उसने पीढ़ी-दर-पीढ़ी उस पुस्तक या उसके ज्ञान को आगे फैलाया। हालांकि यह रहस्य आज भी बरकरार है।
क्या रावण के दस सिर थे? सचमुच यह एक रहस्यमय बात ही है कि किसी के 3, 4 या 10 सिर हों। भगवान दत्तात्रेय के 3, ब्रह्माजी के 4 और रावण के 10 सिर थे। ‘रावण’… दुनिया में इस नाम का दूसरा कोई व्यक्ति नहीं है। राम तो बहुत मिल जाएंगे, लेकिन रावण नहीं। रावण तो सिर्फ रावण है। राजाधिराज लंकाधिपति महाराज रावण को ‘दशानन’ भी कहते हैं। कहते हैं कि रावण लंका का तमिल राजा था।
जैन शास्त्रों में रावण को प्रति‍-नारायण माना गया है। जैन धर्म के 64 शलाका पुरुषों में रावण की गिनती की जाती है। जैन पुराणों के अनुसार महापंडित रावण आगामी चौबीसी में तीर्थंकर की सूची में भगवान महावीर की तरह 24वें तीर्थंकर के रूप में मान्य होंगे इसीलिए कुछ प्रसिद्ध प्राचीन जैन तीर्थस्थलों पर उनकी मूर्तियां भी प्रतिष्ठित हैं।
क्या रावण के 10 सिर थे? : कहते हैं रावण के 10 सिर थे। क्या सचमुच यह सही है? कुछ विद्वान मानते हैं कि रावण के 10 सिर नहीं थे किंतु वह 10 सिर होने का भ्रम पैदा कर देता था इसी कारण लोग उसे दशानन कहते थे। कुछ विद्वानों के अनुसार रावण 6 दर्शन और चारों वेद का ज्ञाता था इसीलिए उसे दसकंठी भी कहा जाता था। दसकंठी कहे जाने के कारण प्रचलन में उसके 10 सिर मान लिए गए।
जैन शास्त्रों में उल्लेख है कि रावण के गले में बड़ी-बड़ी गोलाकार 9 मणियां होती थीं। उक्त 9 मणियों में उसका सिर दिखाई देता था जिसके कारण उसके 10 सिर होने का भ्रम होता था।
हालांकि ज्यादातर विद्वान और पुराणों के अनुसार तो यही सही है कि रावण एक मायावी व्यक्ति था, जो अपनी माया द्वारा 10 सिर होने का भ्रम पैदा कर सकता था। उसकी मायावी शक्ति और जादू के चर्चे जगप्रसिद्ध थे।
रावण के 10 सिर होने की चर्चा रामचरित मानस में आती है। वह कृष्ण पक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिए चला था तथा 1-1 दिन क्रमशः 1-1 सिर कटते थे। इस तरह 10वें दिन अर्थात शुक्ल पक्ष की दशमी को रावण का वध हुआ इसीलिए दशमी के दिन रावण दहन किया जाता है।
रामचरित मानस में वर्णन आता है कि जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते थे पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। विचार करने की बात है कि क्या एक अंग के कट जाने पर वहां पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है? वस्तुतः रावण के ये सिर कृत्रिम थे- आसुरी माया से बने हुए।
मारीच का चांदी के बिन्दुओं से युक्त स्वर्ण मृग बन जाना, रावण का सीता के समक्ष राम का कटा हुआ सिर रखना आदि से सिद्ध होता है कि राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे। तो रावण के 10 सिर और 20 हाथों को भी मायावी या कृत्रिम माना जा सकता है।
आत्मा या प्राण का कहीं और होना : वैसे कहा जाता है कि हमारी आत्मा का वास दोनों भोहों के बीच भृकुटी में रहता है। लेकिन हमने पुराणों और अन्य ग्रंथों में पढ़ा है कि कुछ लोगों, पशुओं या पक्षियों का प्राण या जीव अन्य कहीं होता था, जैसे किसी राक्षस की जान तोते में थी। अब जब तक तोते को नहीं मारो तो राक्षस को मारना असंभव था। उसी तरह रावण की जान नाभि में थी। क्या ऐसा भी संभव हो सकता है?
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ऐसी मान्यता है कि रावण ने अमरत्व प्राप्ति के उद्देश्य से भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या कर वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा ने उसके इस वरदान को न मानते हुए कहा कि तुम्हारा जीवन नाभि में स्थित रहेगा। रावण की अजर-अमर रहने की इच्छा रह ही गई। यही कारण था कि जब भगवान राम से रावण का युद्ध चल रहा था तो रावण और उसकी सेना राम पर भारी पड़ने लगे थे। ऐसे में विभीषण ने राम को यह राज बताया कि रावण का जीवन उसकी नाभि में है। नाभि में ही अमृत है। तब राम ने रावण की नाभि में तीर मारा और रावण मारा गया। हालांकि रावण की जान तो नाभि में थी लेकिन हमने पढ़ा है कि कई दैत्यों, दानवों, राक्षसों आदि की जान उनके खुद के शरीर से बाहर कहीं ओर सुरक्षित रखी होती थी। राक्षस की जान तोते में थी। तोते की गर्दन मोड़ो तो राक्षस की गर्दन मुड़ जाती थी।
यति : बिगफुट कर रहा है मानव की तबाही का इंतजार, क्योंकि वही है धरती की असली प्राकृतिक प्रजाति। आज का इंसान तो ‘स्टार प्रॉडक्ट’ है जबकि बिगफुट से इंसानों ने धरती को छीन लिया और उन्हें छुपने पर मजबूर कर दिया? आधुनिक जीव वैज्ञानिक तो यही मानते हैं। पूरे विश्व में इन्हें अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। तिब्बत और नेपाल में इन्हें ‘येती’ का नाम दिया जाता है तो ऑस्ट्रेलिया में ‘योवी’ के नाम से जाना जाता है। भारत में इसे ‘यति’ कहते हैं।
यति मानव का वर्णन पुराणों और अन्य भारतीय ग्रंथों में बहुत मिलता है। कहते हैं कि वे हिमालय में कहीं रहते हैं और बहुत कम ही लोगों को दिखाई देते हैं। हालांकि अब तक उनके होने की पुष्टि नहीं हो पाई है, लेकिन कई लोग उनको देखे जाने का दावा करते हैं। भारत के कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम, अरुणाचल आदि राज्यों के लोग उनको देखे जाने का दावा करते आए हैं। नेपाल और तिब्बत के लोग भी यति मानव के होने में विश्वास करते हैं।
हवाखोरी का रहस्य क्या है? : आज भी भारत की धरती पर ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने कई वर्षों से भोजन नहीं किया, लेकिन वे सूर्य योग के बल पर आज भी स्वस्थ और जिंदा हैं। भूख और प्यास से मुक्त सिर्फ सूर्य के प्रकाश के बल पर वे जिंदा हैं।
प्राचीनकाल में ऐसे कई सूर्य साधक थे, जो सूर्य उपासना के बल पर भूख-प्यास से मुक्त ही नहीं रहते थे बल्कि सूर्य की शक्ति से इतनी ऊर्जा हासिल कर लेते थे कि वे किसी भी प्रकार का चमत्कार कर सकते थे। उनमें से ही एक सुग्रीव के भाई बालि का नाम भी लिया जाता है। बालि में ऐसी शक्ति थी कि वह जिससे भी लड़ता था तो उसकी आधी शक्ति छीन लेता था।
वर्तमान युग में प्रहलाद जानी इस बाद का पुख्ता उदाहरण है कि बगैर खाए-पीए व्यक्ति जिंदगी गुजार सकता है। गुजरात में मेहसाणा जिले के प्रहलाद जानी एक ऐसा चमत्कार बन गए हैं जिसने विज्ञान को चौतरफा चक्कर में डाल दिया है। वैज्ञानिक समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर ऐसा कैसे संभव हो रहा है?

हिन्दू धर्म के ऐसे रहस्य, जो अनसुलझे हैं –

क्या कल्पवृक्ष अभी भी है? : वेद और पुराणों में कल्पवृक्ष का उल्लेख मिलता है। कल्पवृक्ष स्वर्ग का एक विशेष वृक्ष है। पौराणिक धर्मग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है, क्योंकि इस वृक्ष में अपार सकारात्मक ऊर्जा का भंडार होता है। यह वृक्ष समुद्र मंथन से निकला था। समुद्र मंथन से प्राप्त यह वृक्ष देवराज इन्द्र को दे दिया गया था और इन्द्र ने इसकी स्थापना ‘सुरकानन वन’ (हिमालय के उत्तर में) में कर दी थी।
एक कल्प की आयु : कल्पवृक्ष का अर्थ होता है, जो एक कल्प तक जीवित रहे। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या सचमुच ऐसा कोई वृक्ष था या है? यदि था तो आज भी उसे होना चाहिए था, क्योंकि उसे तो एक कल्प तक जीवित रहना है। यदि ऐसा कोई-सा वृक्ष है तो वह कैसा दिखता है? और उसके क्या फायदे हैं? हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि अपरिजात के वृक्ष को ही कल्पवृक्ष माना जाता है, लेकिन अधिकतर इससे सहमत नहीं हैं।
क्या कामधेनु गाय होती थी? : कामधेनु गाय की उत्पत्ति भी समुद्र मंथन से हुई थी। यह एक चमत्कारी गाय होती थी जिसके दर्शन मात्र से ही सभी तरह के दु:ख-दर्द दूर हो जाते थे। दैवीय शक्तियों से संपन्न यह गाय जिसके भी पास होती थी उससे चमत्कारिक लाभ मिलता था। इस गाय का दूध अमृत के समान माना जाता था।
गाय हिन्दु्ओं के लिए सबसे पवित्र पशु है। इस धरती पर पहले गायों की कुछ ही प्रजातियां होती थीं। उससे भी प्रारंभिक काल में एक ही प्रजाति थी। आज से लगभग 9,500 वर्ष पूर्व गुरु वशिष्ठ ने गाय के कुल का विस्तार किया और उन्होंने गाय की नई प्रजातियों को भी बनाया, तब गाय की 8 या 10 नस्लें ही थीं जिनका नाम कामधेनु, कपिला, देवनी, नंदनी, भौमा आदि था। कामधेनु के लिए गुरु वशिष्ठ से विश्वामित्र सहित कई अन्य राजाओं ने कई बार युद्ध किया, लेकिन उन्होंने कामधेनु गाय को किसी को भी नहीं दिया। गाय के इस झगड़े में गुरु वशिष्ठ के 100 पुत्र मारे गए थे।
33 कोटि देवता : हिन्दू धर्म के अनुसार गाय में 33 कोटि के देवी-देवता निवास करते हैं। कोटि का अर्थ ‘करोड़’ नहीं, ‘प्रकार’ होता है। इसका मतलब गाय में 33 प्रकार के देवता निवास करते हैं। ये देवता हैं- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्‍विन कुमार। ये मिलकर कुल 33 होते हैं।
गाय की सूर्यकेतु नाड़ी : गाय की पीठ पर रीढ़ की हड्डी में स्थित सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकिरण को रोककर वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं। यह पर्यावरण के लिए लाभदायक है। दूसरी ओर, सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य के संपर्क में आने पर यह स्वर्ण का उत्पादन करती है। गाय के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में मिलता है। यह स्वर्ण दूध या मूत्र पीने से शरीर में जाता है और गोबर के माध्यम से खेतों में। कई रोगियों को स्वर्ण भस्म दिया जाता है।
पंचगव्य : पंचगव्य कई रोगों में लाभदायक है। पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर द्वारा किया जाता है। पंचगव्य द्वारा शरीर की रोग निरोधक क्षमता को बढ़ाकर रोगों को दूर किया जाता है। ऐसा कोई रोग नहीं है जिसका इलाज पंचगव्य से न किया जा सके।
कैलाश पर्वत और देव आत्मस्थान : उत्तराखंड में एक ऐसा रहस्यमय स्थान है जिसे देवस्थान कहते हैं। मुण्डकोपनिषद के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ है। इनका केंद्र हिमालय की वादियों में उत्तराखंड में स्थित है। इसे देवात्मा हिमालय कहा जाता है। इन दुर्गम क्षेत्रों में स्थूल-शरीरधारी व्यक्ति सामान्यतया नहीं पहुंच पाते हैं।
अपने श्रेष्ठ कर्मों के अनुसार सूक्ष्म – शरीरधारी आत्माएं यहां प्रवेश कर जाती हैं। जब भी पृथ्वी पर संकट आता है, नेक और श्रेष्ठ व्यक्तियों की सहायता करने के लिए वे पृथ्वी पर भी आती हैं। देवताओं, यक्षों, गंधर्वों, सिद्ध पुरुषों का निवास इसी क्षेत्र में पाया जाता रहा है।
देवस्थान : प्राचीनकाल में हिमालय में ही देवता रहते थे। यहीं पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्थान था और यहीं पर नंदनकानन वन में इंद्र का राज्य था। इंद्र के राज्य के पास ही गंधर्वों और यक्षों का भी राज्य था। स्वर्ग की स्थिति 2 जगह बताई गई है- पहली हिमालय में और दूसरी कैलाश पर्वत के कई योजन ऊपर। यहीं पर मानसरोवर है और इसी हिमालय में अमरनाथ की गुफाएं हैं।
अन्य रहस्यमय बातें : हिमालय में ही यति जैसे कई रहस्यमय प्राणी रहते हैं। इसके अलावा यहां चमत्कारिक और दुर्लभ जड़ी-बूटियां भी मिलती हैं। भारत और चीन की सेना ने हिमालय क्षेत्र में ही एलियन और यूएफओ को देखने का दावा किया है। हिमालय में ही एक रूपकुंड झील है। इसके तट पर मानव कंकाल पाए गए हैं। पिछले कई वर्षों से भारतीय और यूरोपीय वैज्ञानिकों के विभिन्न समूहों ने इस रहस्य को सुलझाने के कई प्रयास किए, पर नाकाम रहे।
सोमरस आखिर क्या था? सोमरस के बारे में अक्सर पढ़ने और सुनने को मिलता है। आखिर यह सोमरस क्या था? क्या यह शराब जैसा कोई पदार्थ था या कि यह व्यक्ति को युवा बनाए रखने वाला कोई रस था?
ऋग्वेद में शराब की घोर निंदा करते हुए कहा गया है-
।।हृत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्।।
अर्थात : सुरापान करने या नशीले पदार्थों को पीने वाले अक्सर युद्ध, मार-पिटाई या उत्पात मचाया करते हैं।
हालांकि वेदों में शराब को बुराइयों की जड़ कहा गया है, ऐसे में वे देवताओं को कैसे शराब चढ़ा सकते हैं। सुरापान और सोमरस में फर्क था।
अमृत कलश : समुद्र मंथन के दौरान क्या कोई ऐसा रस निकला था जिसे पीकर देवताओं ने अमरता को प्राप्त कर लिया था? यदि समुद्र से ऐसा कोई रस निकल सकता है तो क्या आज नहीं निकल सकता? जरूरी है कि समुद्र से ही निकले? अमृत कलश के लिए देव और दैत्यों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। सचमुच अमृत का निकलना एक रहस्य ही है। हालांकि वैज्ञानिक ऐसी दवा बनाने में लगे हैं जिसे पीकर व्यक्ति अधिक समय तक जवान बना रह सके।
अमर होने का रहस्य : अमर कौन नहीं होना चाहता? समुद्र मंथन में अमृत निकला। इसे प्राप्त करने के लिए देवताओं ने दानवों के साथ छल किया। देवता अमर हो गए। मतलब कि क्या समुद्र में ऐसा कुछ है कि उसमें से अमृत निकले? तो आज भी निकल सकता है? अभी अधिकतम 100 साल के जीवन में अनेकानेक रोग, कष्ट, संताप और झंझट हैं तो अमरता प्राप्त करने पर क्या होगा? 100 वर्ष बाद वैराग्य प्राप्त कर व्यक्ति हिमालय चला जाएगा। वहां क्या करेगा? बोर हो जाएगा तो फिर से संसार में आकर रहेगा। बस यही सिलसिला चलता रहेगा।
महाभारत में 7 चिरंजीवियों का उल्लेख मिलता है। चिरंजीवी का मतलब अमर व्यक्ति। अमर का अर्थ, जो कभी मर नहीं सकते। ये 7 चिरंजीवी हैं- राजा बलि, परशुराम, विभीषण, हनुमानजी, वेदव्यास, अश्वत्थामा और कृपाचार्य। हालांकि कुछ विद्वान मानते हैं कि मार्कंडेय ऋषि भी चिरंजीवी हैं।
माना जाता है कि ये सातों पिछले कई हजार वर्षों से इस धरती पर रह रहे हैं, लेकिन क्या धरती पर रहकर इतने हजारों वर्ष तक जीवित रहना संभव है? हालांकि कई ऐसे ऋषि-मुनि थे, जो धरती के बाहर जाकर फिर लौट आते थे और इस तरह वे अपनी उम्र फ्रिज कर बढ़ते रहते थे। हालांकि हिमालय में रहने से भी उम्र बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। हिन्दू धर्मशास्त्रों में ऐसी कई कथाएं हैं जिसमें लिखा है कि अमरता प्राप्त करने के लिए फलां-फलां दैत्य या साधु ने घोर तप करके शिवजी को प्रसन्न कर लिया। बाद में उसे मारने के लिए भगवान के भी पसीने छूट गए। अमर होने के लिए कई ऐसे मंत्र हैं जिनके जपने से शरीर हमेशा युवा बना रहता है। ‘महामृत्युंजय’ मंत्र के बारे में कहा जाता है कि इसके माध्यम से अमरता पाई जा सकती है।
वेद, उपनिषद, गीता, महाभारत, पुराण, योग और आयुर्वेद में अमरत्व प्राप्त करने के अनेक साधन बताए गए हैं। आयुर्वेद में कायाकल्प की विधि उसका ही एक हिस्सा है। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि विज्ञान इस दिशा में क्या कर रहा है? विज्ञान भी इस दिशा में काम कर रहा है कि किस तरह व्यक्ति अमर हो जाए अर्थात कभी नहीं मरे।
सावित्री-सत्यवान की कथा तो आपने सुनी ही होगी। सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे। सावित्री और यमराज के बीच लंबा संवाद हुआ। इसके बाद भी यह पता नहीं चलता है कि सावित्री ने ऐसा क्या किया कि सत्यवान फिर से जीवित हो उठा। इस जीवित कर देने या हो जाने की प्रक्रिया के बारे में महाभारत भी मौन है। जरूर सावित्री के पास कोई प्रक्रिया रही होगी। जिस दिन यह प्रक्रिया वैज्ञानिक ढंग से ज्ञात हो जाएगी, हम अमरत्व प्राप्त कर लेंगे।
आपने अमरबेल का नाम सुना होगा। विज्ञान चाहता है कि मनुष्य भी इसी तरह का बन जाए, कायापलट करता रहा और जिंदा बना रहे। वैज्ञानिकों का एक समूह चरणबद्ध ढंग से इंसान को अमर बनाने में लगा हुआ है। समुद्र में जेलीफिश (टयूल्रीटोप्सिस न्यूट्रीकुला) नामक मछली पाई जाती है। यह तकनीकी दृष्टि से कभी नहीं मरती है। हां, यदि आप इसकी हत्या कर दें या कोई अन्य जीव जेलीफिश का भक्षण कर ले, फिर तो उसे मरना ही है। इस कारण इसे इम्मोर्टल जेलीफिश भी कहा जाता है। जेलीफिश बुढ़ापे से बाल्यकाल की ओर लौटने की क्षमता रखती है। अगर वैज्ञानिक जेलीफिश के अमरता के रहस्य को सुलझा लें, तो मानव अमर हो सकता है।
क्या कर रहे हैं वैज्ञानिक? : वैज्ञानिक अमरता के रहस्यों से पर्दा हटाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। बढ़ती उम्र के प्रभाव को रोकने के लिए कई तरह की दवाइयों और सर्जरी का विकास किया जा रहा है। अब इसमें योग और आयुर्वेद को भी महत्व दिया जाने लगा है। बढ़ती उम्र के प्रभाव को रोकने के बारे में आयोजित एक व्यापक सर्वे में पाया गया कि उम्र बढ़ाने वाली ‘गोली’ को बनाना संभव है। रूस के साइबेरिया के जंगलों में एक औषधि पाई जाती है जिसे जिंगसिंग कहते हैं। चीन के लोग इसका ज्यादा इस्तेमाल करके देर तक युवा बने रहते हैं।
‘जर्नल नेचर’ में प्रकाशित ‘पजल, प्रॉमिस एंड क्योर ऑफ एजिंग’ नामक रिव्यू में कहा गया है कि आने वाले दशकों में इंसान का जीवनकाल बढ़ा पाना लगभग संभव हो पाएगा। अखबार ‘डेली टेलीग्राफ’ के अनुसार एज रिसर्च पर बक इंस्टीट्यूट, कैलिफॉर्निया के डॉक्टर जूडिथ कैंपिसी ने बताया कि सिंपल ऑर्गनिज्म के बारे में मौजूदा नतीजों से इसमें कोई शक नहीं कि जीवनकाल को बढ़ाया-घटाया जा सकता है। पहले भी कई स्टडीज में पाया जा चुका है कि अगर बढ़ती उम्र के असर को उजागर करने वाले जिनेटिक प्रोसेस को बंद कर दिया जाए, तो इंसान हमेशा जवान बना रह सकता है। जर्नल सेल के जुलाई के अंक में प्रकाशित एक रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया कि बढ़ती उम्र का प्रभाव जिनेटिक प्लान का हिस्सा हो सकता है, शारीरिक गतिविधियों का नतीजा नहीं। खोज और रिसर्च जारी है…।
महान योद्धा बर्बरीक और घटोत्कच : बर्बरीक महान पांडव भीम के पुत्र घटोत्कच और नागकन्या अहिलवती के पुत्र थे। कहीं-कहीं पर मुर दैत्य की पुत्री ‘कामकंटकटा’ के उदर से भी इनके जन्म होने की बात कही गई है। बर्बरीक और घटोत्कच के बारे में कहा जाता है कि ये दोनों ही विशालकाय मानव थे। घटोत्कच ने कौरवों की सेना में कोहराम मचा दिया था। आखिरकार कर्ण ने उस अस्त्र का उपयोग किया जिसे वह अर्जुन पर चलाना चाहते थे और घटोत्कच मारा गया।
महाभारत का युद्ध जब तय हो गया तो बर्बरीक ने भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा व्यक्त की और मां को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया। बर्बरीक अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर 3 बाण और धनुष के साथ कुरुक्षेत्र की रणभूमि की ओर अग्रसर हुए।
बर्बरीक के लिए 3 बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरव और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। यह जानकर भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण के वेश में उनके सामने उपस्थित होकर उनसे दान में छलपूर्वक उनका शीश मांग लिया।
बर्बरीक ने कृष्ण से प्रार्थना की कि वे अंत तक युद्ध देखना चाहते हैं, तब कृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन मास की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया। भगवान ने उस शीश को अमृत से सींचकर सबसे ऊंची जगह पर रख दिया ताकि वे महाभारत युद्ध देख सकें। उनका सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर रख दिया गया, जहां से बर्बरीक संपूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे।
द्वारिका नगर : मथुरा से निकलकर भगवान कृष्ण ने द्वारिका क्षेत्र में ही पहले से स्थापित खंडहर हो चुके नगर क्षेत्र में एक नए नगर की स्थापना की थी। कहना चाहिए कि भगवान कृष्ण ने अपने पूर्वजों की भूमि को फिर से रहने लायक बनाया था। प्राचीन इतिहास की खोज करने वाले इतिहासकारों के अनुसार द्वारिका विश्‍व का सबसे रहस्यमय शहर है। इस शहर पर अभी भी शोध जारी है।
कई द्वारों का शहर होने के कारण ‘द्वारिका’ इसका नाम पड़ा। इस शहर के चारों ओर बहुत ही लंबी दीवार थी जिसमें कई द्वार थे। वह दीवार आज भी समुद्र के तल में स्थित है। भारत के सबसे प्राचीन नगरों में से एक है द्वारिका। ये 7 नगर हैं- द्वारिका, मथुरा, काशी, हरिद्वार, अवंतिका, कांची और अयोध्या। द्वारिका को द्वारावती, कुशस्थली, आनर्तक, ओखा-मंडल, गोमती द्वारिका, चक्रतीर्थ, अंतरद्वीप, वारिदुर्ग, उदधिमध्य स्थान भी कहा जाता है।
गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे स्थित 4 धामों में से 1 धाम और 7 पवित्र पुरियों में से एक पुरी है द्वारिका। द्वारिका 2 हैं- गोमती द्वारिका, बेट द्वारिका। गोमती द्वारिका धाम है, बेट द्वारिका पुरी है। बेट द्वारिका के लिए समुद्र मार्ग से जाना पड़ता है।
एक समय था, जब लोग कहते थे कि द्वारिका नगरी एक काल्‍पनिक नगर है, लेकिन इस कल्‍पना को सच साबित कर दिखाया ऑर्कियोलॉजिस्‍ट प्रो. एसआर राव ने। प्रो. राव ने मैसूर विश्‍वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद बड़ौदा में राज्‍य पुरातत्‍व विभाग ज्‍वॉइन कर लिया था। उसके बाद भारतीय पुरातत्‍व विभाग में काम किया। प्रो. राव और उनकी टीम ने 1979-80 में समुद्र में 560 मीटर लंबी द्वारिका की दीवार की खोज की। साथ में उन्‍हें वहां पर उस समय के बर्तन भी मिले, जो 1528 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व के हैं। इसके अलावा सिन्धु घाटी सभ्‍यता के भी कई अवशेष उन्‍होंने खोजे। उस जगह पर भी उन्‍होंने खुदाई में कई रहस्‍य खोले, जहां पर कुरुक्षेत्र का युद्ध हुआ था।
कैलाश मंदिर : गुफाएं तो भारत में बहुत हैं, लेकिन अजंता-एलोरा की गुफाओं के बारे में वैज्ञानिक कहते हैं कि ये किसी एलियंस के समूह ने बनाई हैं। यहां पर एक विशालकाय कैलाश मंदिर है। आर्कियोलॉजिस्टों के अनुसार इसे कम से कम 4,000 वर्ष पूर्व बनाया गया था। 40 लाख टन की चट्टानों से बनाए गए इस मंदिर को किस तकनीक से बनाया गया होगा? यह आज की आधुनिक इंजीनियरिंग के बस की भी बात नहीं है।
माना जाता है कि एलोरा की गुफाओं के अंदर नीचे एक सीक्रेट शहर है। आर्कियोलॉजिकल और जियोलॉजिस्ट की रिसर्च से यह पता चला कि ये कोई सामान्य गुफाएं नहीं हैं। इन गुफाओं को कोई आम इंसान या आज की आधुनिक तकनीक नहीं बना सकती। यहां एक ऐसी सुरंग है, जो इसे अंडरग्राउंड शहर में ले जाती है।
क्या सचमुच ही कर्ण के कवच और कुंड आज भी बनाए जा सकते हैं? 
भगवान कृष्ण यह भली-भांति जानते थे कि जब तक कर्ण के पास उसका कवच और कुंडल हैं, तब तक उसे कोई नहीं मार सकता। ऐसे में अर्जुन की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं। उधर देवराज इन्द्र भी चिंतित थे, क्योंकि अर्जुन उनका पुत्र था। भगवान कृष्ण और देवराज इन्द्र दोनों जानते थे कि जब तक कर्ण के पास पैदायशी कवच और कुंडल हैं, वह युद्ध में अजेय रहेगा।
तब कृष्ण ने देवराज इन्द्र को एक उपाय बताया और फिर देवराज इन्द्र एक ब्राह्मण के वेश में पहुंच गए कर्ण के द्वार। देवराज भी सभी के साथ लाइन में खड़े हो गए। कर्ण सभी को कुछ न कुछ दान देते जा रहे थे। बाद में जब देवराज का नंबर आया तो दानी कर्ण ने पूछा- विप्रवर, आज्ञा कीजिए! किस वस्तु की अभिलाषा लेकर आए हैं? तब देवराज इंद्र ने छल से उनके कवच और कुंडल दान में ले लिए थे।
कहां से आया सुदर्शन चक्र? कहते हैं कि सुदर्शन चक्र एक ऐसा अचूक अस्त्र था कि जिसे छोड़ने के बाद यह लक्ष्य का पीछा करता था और उसका काम तमाम करके वापस छोड़े गए स्थान पर आ जाता था। इस चक्र को विष्णु की तर्जनी अंगुली में घूमते हुए बताया जाता है। सबसे पहले यह चक्र उन्हीं के पास था।
पुराणों के अनुसार विभिन्न देवताओं के पास अपने-अपने चक्र हुआ करते थे। सभी चक्रों की अलग-अलग क्षमता होती थी और सभी के चक्रों के नाम भी होते थे। महाभारत युद्ध में भगवान कृष्ण के पास सुदर्शन चक्र था। यह सुदर्शन चक्र कहां से आया था और चक्रों का जन्मदाता कौन था? क्या आज भी इस तरह का अस्त्र बनाया जा सकता है? या कि यह एक चमत्कारिक शक्ति से ही संचालित होता था किसी मशीन द्वारा नहीं? ऐसे कई सवाल हैं जिनका रहस्य अभी भी बरकरार है। हालांकि आजकल ऐसी मिसाइलें बनने लगी हैं, जो लक्ष्य को भेदकर आपस लौट आती हैं, लेकिन चक्र जैसा अस्त्र तो सचमुच ही अद्भुत है।
रस्सी का जादू : आज पश्‍चिमी देशों में तरह-तरह की जादू-विद्या लोकप्रिय है और समाज में हर वर्ग के लोग इसका अभ्यास करते हैं। एक समय था, जब भारत में जादूगरों की भरमार थी। इस देश में एक से एक जादूगर, सम्मोहनविद, इंद्रजाल, नट, सपेरे और करतब दिखाने वाले होते थे। बंगाल का काला जादू तो विश्वप्रसिद्ध था।
यूरोप की कल्पना में भारत सदा से बेहिसाब संपत्ति और अलौकिक घटनाओं का एक अविश्वसनीय देश रहा है, जहां बुद्धिमान, जादूगर, सिद्ध आदि व्यक्तियों की संख्या सामान्य से कुछ अधिक थी। विदेशी भ्रमणकर्ताओं और व्यापारियों ने भारत से कई तरह का जादू सीखा और उसे अपने देश में ले जाकर विकसित किया। बाद में इसी तरह के जादू का इस्तेमाल धर्म प्रचार के लिए किया गया। आजकल भारत जादू के मामले में पिछड़ गया है। एक समय था, जब सोवियत संघ और रोम में जादूगरों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और हजारों जादूगरों का कत्ल कर दिया गया था, लेकिन आजकल अमेरिका और योरप के कई देशों में आज भी जादूगरों की धूम है।
भारत में सड़क या चौराहे पर जादूगर एक जादू दिखाते थे जिसे रस्सी का जादू या करतब कहा जाता था। बीन या पुंगी की धुन पर वह रस्सी सांप के पिटारे से निकलकर आसमान में चली जाती थी और जादूगर उस हवा में झूलती रस्सी पर चढ़कर आसमान में कहीं गायब हो जाता था।
अंग्रजों के काल में किसी ने यह जादू दिखाया था, उसके बाद से इस जादू के बारे में सुना ही जाता है। अब इसे दिखाने वाला कोई नहीं है। यही कारण है कि इस जादू को दिखाना अब किसी भी जादूगर के बस की बात नहीं रही। यह विद्या लगभग खो-सी गई है। इसके खो जाने के कारण अब यह संदेह किया जाता है कि कहीं ऐसा जादू दिखाया भी जाता था या नहीं?

एक से बढ़कर एक 101 रोचक तथ्य

एक से बढ़कर एक 101 रोचक तथ्य

1: फिलिपिन्स में पाया जाने वाला बोया पक्षी प्रकाश में रहने का इतना शौकीन होता है कि अपने घोंसले के चारो और जुगनु भरकर लटका देता है.

2.वेटिकनसिटी दुनिया का सबसे छोटा देश है इसका क्षेत्रफल 0.2 वर्ग मील है और इसकी आबादी लगभग 770 है. इनमें से कोई भी इसका परमानेंट नागरिक नही है.

3.नील आर्मस्ट्राँग ने सबसे पहले अपना बाँया पैर चँद्रमा पर रखा था और उस समय उनके दिल की धड़कन 156 बार प्रति मिनट थी.

4.धरती के गुरूत्वाकर्षण के कारण पर्वतों का 15,000 मीटर से ऊँचा होना संभव नही है.

5.रोम दुनिया का वो शहर है जिसकी आबादी ने सबसे पहले 10 लाख का आकड़ा पार किया था.

6.1992 के क्रिकेट विश्वकप में इंग्लैंड को हराते हुए जिम्बाब्वे ने बड़ा उल्टफेर कर दिया था. पहले बल्लेबाजी करते हुए जिम्बाब्वे ने सिर्फ 134 रन बनाए और इंग्लैंड का काम आसान कर दिया लेकिन हुआ ऐसा नही, इंग्लैंड की टीम 125 रन पर ही ढेर हो गई.

7. 269 मीटर की ऊँचाई वाले टाइटैनिक को अगर सीधा खड़ा कर दिया जाए तो यह अपने समय की हर इमारत से ऊँचा होता .8.टाइटैनिक की चिमनिया इतनी बड़ी थी कि इनमें से दो ट्रेने गुजर सकती थी.

9.सिगरेट लाइटर की खोज माचिस से पहले हुई थी.

10.हमारे ऊँगलीयों के निशानों की तरह हमारी जुबान के भी निशान भिन्न होते है.

11.विश्व में अभी भी 30 प्रतीशत लोग ऐसे है जिन्होंने कभी मोबाइल का प्रयोग नही किया.

12.औसतन हर दिन 12 नव-जन्में बच्चे किसी ओर मां-बाप को दें दिए जाते हैं.

13.आईसलैंड में पालतू कुत्ता रखना क़ानून के विरूद्ध है.

14.Righted-handed लोग औसतन left-handed लोगों से 9 साल ज्यादा जीते हैं.

15.शहद एक एकलौता ऐसा खाद्य पदार्थ है जो कि हजारों सालों तक खराब नही होता. Egypt के पिरामिडों में फैरो बादशाह की क्रब में पाया गया शहद जब खोजी वैज्ञानिकों द्वारा चखा गया तब भी वह उतना ही स्वादिष्ट था. बस उसे थोडा गरम करने की जरूरत थी.16.एक औसतन लैड की पेंसिल से अगर एक लाइन खींची जाए तो वह 35 किलोमीटर लंम्बी होगी जिससे 50,000 अंग्रेजी शब्द लिखें जा सकते है.

17.एक समुद्री केकडे का दिल उसके सिर में होता है.

18.गोरिल्ला एक दिन मे ज्यादा से ज्यादा 14 घंटे सोते है.

19.हर साल लोग साँपों के ज्यादा मधु मक्खियों द्वारा काटे जाने से मारे जाते है.

20.कुछ कीड़े भोजन ना मिलने पर खुद को ही खा जाते हैं.

21.कुछ शेर दिन में 50 बार सहवास करते है.

22.तितलियाँ किसी वस्तु का स्वाद अपने पैरों से चखती है.

23.1386 ईसवी में फ्रांस में लोगो द्वारा एक सुअर को एक बच्चे के क़त्ल के दोष में फाँसी पर लटका दिया गया था.

24.मानव गर्भनिरोधक गोलियां गोरिल्ला पर भी काम करती है.25.एक गिलहरी की उम्र 9 साल तक होती है.

26.क्या आप जानते है छिपकली का दिल 1 मिनट में 1000 बार धड़कता है.

27.अगर एक बिच्छू पर थोड़ी सी मात्रा में भी शराब या रस डाल दिया जाए तो यह पागल हो जाएगा और खुद को डंक मार लेगा.

28.एक औसत मनुषय के लिए अपनी ही कुहनी चाट पाना असंभव है.

29.जो लोग इस को पढ़ रहे है उन में से 75 % से ज्यादा लोग अपनी कुहनी चाटने की कोशिश करेगे.

30.अगर आप जोर से छीके तो आप अपनी पसली तुडवा सकते हैं.

31.अगर आप छीकते वक्त अपनी आँखे जोर से खुली रखने की कोशिश करे तो आप की eyeball (डेला) तिडक सकता है.

32.सिर्फ एक घंटा हेडफोन लगाने से हमारे कानो में जीवाणुयों की तादाद 700 गुना बढ़ जाती है.

33.पूरे जीवन काल के दौरान नीद में आप भिन्न-भिन्न तरह के 70 कीट और 10 मकडीयाँ खा जाते है.

34.आपका दिल एक दिन में लगभग 100,000 बार धडकता है.

35.आप के शरीर की लगभग 25 फीसदी हड़डियाँ आप के पैरों में होती हैं.

36.ऊगलियों के नाखुन पैरों के नाखुनों से 4 गुना ज्यादा जलदी बढ़ते हैं.

37.आप 300 हड़डियों के साथ जन्म लेते है., पर 18 साल तक होतो-होते आप की हड़डियाँ जुड़ कर 206 रह जाती हैं.

38.एक औसतन ईन्सान दिन में 10 बार हसता है.39.छीकते समय आँखे खुली रख पाना नामुनकिन है और छीकते समय दिल की गती एक मिली सेंकेड के लिए रुक जाती है.

40.”Rhythm”(लय) vowel के बिना इंग्लिस का सबसे बड़ा शब्द है.

41.’TYPEWRITER’ सबसे लंम्बा शब्द है जो कि keyboard पर एक ही लाइन पर टाइप होता है.

42.’Uncopyrightable’ एकलौता 15 अक्षरो वाला शब्द है जिसमे कोई भी अक्षर दुबारा नही आता.

43.’Forty’ एकलौती संख्या है जिसके अक्षर alphabetical order के अनुसार जबकि ‘one” के alphabetical order से उलट हैं.

44.इंग्लिस के शब्द ‘therein’ से सात सार्थक शब्द निकाले जा सकते है -the,there,he,in,rein(लगाम),her,here,ere(शीघ्र),therein,और herein(इसमे).

45.Albert Einstein के अनुसार हम रात को आकाश में लाखों तारे देखते है उस जगह नही होते ब्लकि कही और होते है. हमें तों उनके द्वारा छोडा गया कई लाख प्रकाश साल पहले का प्रकाश होता है.

46.ज्यादातर विज्ञापनो में घड़ी पर 10 बज कर 10 मिनट का समय दिखाया जाया जाता है.

47.पुरूषों की shirts के बटन Right side पर जबकि औरतो left side के पर होते हैं.

48.चमगादड गुफा से निकलते समय हमेसा बाएँ हाथ मुडते है.

49.लगभग 100 चमगादड़ मिल के एक साल में 25 गाय का खून पी जाते हैं.

50.अगर एक आदमी सात दिनो के लिए कही बाहर जाता है तो वह पाँच दिन के कपड़े पैक करता है. मगर जब एक औरत सात दिन के टूर पर जाती है तो वह लगभग 21 सूट पैक करती है क्योकि वह यह नही जानती कि हर दिन उसे क्या पहनने को दिल करेगा.

51.100 की उम्र के पार पहुँचने वालो में से 5 में से 4 औरते होती हैं.

52.जिन लोगो कि शरीर पर तिलों की संख्या ज्यादा होती है वह औसतन कम तिल वाले लोगो से ज्यादा जीते हैं.

53.कुत्ते और बिल्लीयाँ भी मनुष्य की तरह left या right-handed होते है.54.इतिहास में सबसे छोटा युद्ध 1896 में England और Zanzibar के बीच हुआ. जिसमें Zanzibar ने 38 मिन्ट बाद ही सरेंडर कर दिया था.

55.फेसबुक पर 10 या उससे अधिक likes वाले 4 करोड़ 20 लाख पेज है।

56.फेसबुक के 43 प्रतिशत users पुरुष है वहीं 57 फीसदी महिलाएं।

57.यदि कोई व्यक्ति हर वेबसाइट को मात्र एक मिनट तक ब्राउज़ करे तो उसे सारी वेबसाइटें खंगालने में 31000 वर्ष लगेंगे. यदि कोई व्यक्ति सारे वेबपन्ने पढना चाहे तो उसे ऐसा करने में करीब 6,00,00,000 दशक लगेंगे.

58.दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट का मैदान हिमाचल प्रदेश के चायल नामक स्‍थान पर है। इसे समुद्री सतह से 2444 मीटर की ऊंचाई पर भूमि को समतल बना कर 1893 में तैयार किया गया था।

59.व्यक्ति खाना खाए बिना कई हफ्ते गुजार सकता है, लेकिन सोए बिना केवल 11 दिन रह सकता है।

60.जिस हाथ से आप लिखते हैं, उसकी उंगलियों के नाखून ज्यादा तेजी से बढ़ते हैं।

61.हमारे शरीर में लोहा भी होता है इतना कि एक शरीर से प्राप्त लोहे से एक इंच की कील भी तैयार की जा सकती है |

62.एक सामान्य मनुष्य अपने पूरे जीवनकाल में भूमध्य रेखा के पाँच बार चक्करलगाने जितना चलता है। यह लगभग 2 लाख किलोमीटर बनता है.

63.भास्‍कराचार्य ने खगोल शास्‍त्र के कई सौ साल पहले पृथ्‍वी द्वारा सूर्य के चारों ओर चक्‍कर लगाने में लगने वाले सही समय की गणना की थी। उनकी गणना के अनुसार सूर्य की परिक्रमा में पृथ्‍वी को 365258756484 दिन का समय लगता है।64.वाराणसी, जिसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन शहर है जब भगवान बुद्ध ने 500 बी सी में यहां आगमन किया और यह आज विश्‍व का सबसे पुराना और निरंतर आगे बढ़ने वाला शहर है।

65.भारत 17वीं शताब्‍दी के आरंभ तक ब्रिटिश राज्‍य आने से पहले सबसे सम्‍पन्‍न देश था। क्रिस्‍टोफर कोलम्‍बस भारत की सम्‍पन्‍नता से आकर्षित हो कर भारत आने का समुद्री मार्ग खोजने चला और उसने गलती से अमेरिका को खोज लिया।

66.संस्कृत सभी उच्च भाषाओं की जननी माना जाता है. क्योंकि यह कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के लिए सबसे सटीक है, और इसलिए उपयुक्त भाषा है.

67.70%फीसदी लिवर, 80 फीसदी आंत और एक किडनी बगैर भी इंसान जिंदा रह सकता है।

68.कुर्सी पर बैठ कर अपने दाएं पैर से गोला बनाइये और साथ ही अपने दाएं हाथ से हवा में 6 लिखिए , आपके पैरों की दिशा बदल जाएगी.

69.मुंबई के ब्रेबॅार्न स्टेडियम में 1988 में खेल One day अभ्यास मैच में सचिन तेंदुलकर ने पाकिस्तान के लिए फ़ीलि्डिंग की थी.

70.गुगल से 10 अरब से अधिक पेज जुडे हुए है जो हर 19 महीने में दुगने हो जाते है.

71.Internet में 80% प्रतीशत ट्रेफिक सर्च इंजनो की वजह से आता है.

72.हम शाम के मुकाबले सुबह लगभग 1 cm लम्बे होते हैं.

73.सपनो में हम सिर्फ वही चीजें देख सकते हैं जो हम पहले से देख चुके हैं.

74.अफजल खान की एक बीवी ने उसे शिवाजी की शरण जाने को कहा तो अफजल खान इतना भड़क गया कि उसने अपनी पूरी 63 बीवीयो को मार कर एक कुवे में फेक दिया.

75.गरम पानी ठन्डे पानी से पहले बर्फ में बदल जाता है.

76.अगर पृथ्वी को सेब के आकार का बना दे तो पृथ्वी के ऊपर वायुमंडल केवल उसके छिलके के बराबर है.

77.टाइटैनिक जहाज को बनाने को लिए उस समय 35 करोड़ 70 लाख रूपये लगे थे जब कि टाइटैनिक फिलम बनाने के लिए 1000 करोड़ के लगभग लागत आई.

78.बिल गेट्स हर सेकेण्ड में करीब 12000 रुपये कमाते हैं यानि एक दिन में करीब 102 करोड़ रूपये.

79.राष्ट्रपति जार्ज बुश ने एक बार जपानी प्रधानमंन्त्री की कुर्सी पर उल्टी कर दी थी.

80.चीन में एक 17 साल के लड़के ने i pad2 और i phone के लिए अपनी kidney बेच दी थी.

81.धरती पे जितना भार सारी चीटीयों का है उतना ही सारे मनुष्यो का है.

82.Octopus के तीन दिल होते हैं.

83.सिर्फ मादा मच्छर ही आपका ख़ून चूसती हैं. नर मच्छर सिर्फ आवाजे करते हैं.

84.ब्लु वेहल एक साँस में 2000 गुबारो जितनी हवा खिचती है और बाहर निकालती है.

85.मच्छलीयो की यादआसत सिर्फ कुछ सेकेंड की होती है.

86.पैराशूट की खोज हवाईजहाज से 1 सदी पहले हुई थी.

87..कंगारु उल्टा नही चल सकते.

88.चीन में आप किसी व्यकित को 100 रूपया प्रति घंटा अपनी जगह लाइन में लगने के लिए कह सकते है.

89.Facebook उपयोग करने वाली सबसे बुजुर्ग मनुष्य 105 साल की एक महिला है जिसका नाम Lillion Lowe है.

90.ग्रीक और बुलगागिया में एक युद्ध सिर्फ इसलिए लड़ा गया था क्योंकि एक कुत्ता उनका border पार कर गया था.

91.1894 में जो सबसे पहला कैमरा बना था उससे आपको अपनी फोटो खीचने के लिए उसके सामने 8 घंटे तक बैठना पड़ेगा.92.आप को कभी भी यह याद नही रहेगा कि आपका सपना कहा से शुरू हुआ था.

93.Keyboard पर टॅायलेट सीट से 60 गुना ज्यादा germs होते है.

94.हर साल 4 लोग अपनी पैंट बदलते समय अपनी जान गवा देते हैं.

95.फेसबुक संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने यूनिवर्सिटी में पढाई के दौरान Facemash नाम से वेबसाईट बनाई थी बाद में इसी का नाम Facebook कर दिया गया.

96.Abraham Lincoln जब Depression(अवसाद) से गुजर रहे थे तो वह चाकू-छूरों से दूर रहते थे, उन्हें डर था कि वह खुद को मार न ले.

97.लोग सबसे ज्यादा तेज फैसले तब लेते है जब वह वीडियो गेम खेल रहे होते हैं.

98.हर साल दो मिनट ऐसे होते है जिन्में 61 सैकेंड होते हैं.

99.आम तौर पे classes में पढ़ाया जाता है कि प्रकाश की गति 3 लाख किलोमीटर/सैकेंड होती है पर असल में यह गति 2,99,792 होती है.

100.हर सैकेंड 100 बार आसमानी बिजली धरती पर गिरती है.

101. Kiss करने से ज्यादा हाथ मिलाते समय germs एक दुसरे को ट्रान्सफर होते हैं.

अनसुलझे रहस्य-

Unsolved mystery of the world in hindi

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दुनियां के अनसुलझे रहस्य  | Unsolved Mystery in Hindi : दुनिया में एक से एक घटनाएं होती हैं। कई घटनाएं जहां बेहद सामान्य होती हैं तो कुछ घटना बेहद चौंकाने वाली होती हैं। आज हम आपको दुनियाभर की कुछ ऐसी घटनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं जो बेहद रहस्यमय मानी जाती हैं। इनमें से कई घटनाएं ऐसी हैं जिसके ऊपर साइंटिफिक रिसर्च भी किए गए, लेकिन ठीक-ठीक कारण पता नहीं चल सका।

हालांकि, यह अपने आप में अजीबोगरीब है, लेकिन साइंस की तरक्की के बावजूद गई घटनाओं पर से अभी पर्दा नहीं उठ सका। आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ घटनाओं के बारे में। यह घटनाएें हमने इंटरनेट के जरिए ली हैं।

 

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1. लटकती हुई लाश

कूपर फैमिली ने 1950 के आसपास टेक्सास में एक पुराना घर खरीदा। उस घर में पहली रात जश्न मनाने के दौरान उनके पिता ने परिवार की फोटो ली। इस फोटो में दो बच्चे अपनी मां और दादी की गोद में बैठे हुए हैं। इस फोटो के डेवलप होने के बाद पूरा परिवार ही आतंकित हो गया, क्योंकि फोटो में परिवार के साथ ही एक लटकती हुई लाश भी दिखाई दे रही थी। दावा किया गया कि फोटो लेने के वक्त वहां ऐसी कोई भी चीज मौजूद नहीं थी। कुछ लोगों ने कहा कि संभव है कि निगेटिव के साथ छेड़छाड़ की गई हो, लेकिन कूपर फैमिली ने इससे इंकार किया। बाद में फोटो की सच्चाई जानने की कई लोगों ने कोशिश की, लेकिन यह अब भी रहस्य बनी हुई है।

 

 

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2. हेस्सडालेन घाटी की रहस्यमयी रोशनियां

नॉर्वे के होल्टलेन में हेस्सडालेन घाटी के आकाश में अक्सर देखी जाने वाली रोशनी एक अबूझ पहेली की तरह है। ज्यादातर यह रहस्यमयी रोशनी चमकदार सफेद, पीले या लाल रंगों में एक घंटे से अधिक देर तक दिखाई दी हैं। यह रोशनी तेजी से कभी धीमे हवा में तैरती हैं, तो कभी एक ही जगह ठहर-सी जाती है। इस तरह की घटना केवल नार्वे में ही नहीं, बल्कि दुनिया के दूसरे भागों में भी 1940 के बाद से खबरों में आती रही हैं। इसके कारणों को जानने की का काफी कोशिशें की गईं, पर किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका।

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3. सोल्वे फर्थ का एस्ट्रोनॉट

यह फोटो 1964 में जिम टेम्पलेटन नाम के एक फोटोग्राफर और स्थानीय इतिहासकार ने ली थी। वे अपनी बेटी को इंग्लैड के कमब्रिया के एक इलाके ‘सोल्वे फर्थ’ ले गए थे। फोटोज को डेवलप करने पर उन्हें एक फोटो में एस्ट्रोनॉट जैसी आकृति दिखाई दी। जिम ने यह दावा किया था कि फोटो लेने के दौरान उनकी बेटी के पीछे कोई नहीं था। इस फोटो को लेकर काफी बहस भी हुई थी। इसलिए इसे अक्सर रहस्यमय घटनाओं की लिस्ट में शामिल किया जाता है।

 

 

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4. आसमानी बिजली का रहस्य

1638 को सेंट पेंक्रास के एक चर्च को एक जोरदार आंधी का सामना करना पड़ा। इस दौरान चर्च से एक आसमानी बिजली टकराई थी। दोपहर का समय होने के कारण चर्च प्रार्थना करते 300 लोगों से खचाखच भरा हुआ था। चार लोग इसमें मारे गए, 60 बुरी तरह घायल हुए और बिल्डिंग भी तहस-नहस हो गई। इस घटना के पहले अजीब अंधेरा छा गया था। तेज रोशनी चर्च और उसमें बैठे लोगों को नुकसान पहुंचाकर वापस चली गई।

therichest.com के मुताबिक, स्थानीय लोगों ने दावा किया था कि एक शैतान ने जुआरियों के बुलाने पर इस घटना को अंजाम दिया था। असल में क्या हुआ था, इसे लेकर आज भी अटकलें ही लगाई जा रही हैं। कई रिसर्चरों ने इस घटना के तह में जाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी कुछ हाथ नहीं लगा।

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5. ब्रिटिश कोलंबिया समुद्र तटों के कटे हुए पैर

20 अगस्त 2007 को सेलिश सागर के समुद्री तटों पर कई कटे हुए इंसानों के पैर पाए गए। इनमें से कुछ की ही पहचान हो सकी। अनुमान लगाया गया कि ये पैर किसी बोटिंग एक्सीडेंट या समुद्र में हुए प्लेन क्रेश में मारे गए लोगों के हो सकते हैं। दूसरा, ये क्वाड्रा आइसलैंड के प्लेन क्रेश में मारे गए चार लोगों के पैर भी हो सकते हैं।

पैरों पर किसी तरह के निशान नहीं पाए गए, पर मर्डर और टॉर्चर के बाद की गई हत्या से भी इनकार नहीं किया जा सकता। 26 दिसंबर 2004 को एशिया में आई सुनामी से भी इसे जोड़ा गया।

 

 

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6. ब्लैक दाहिला मर्डर

‘ब्लैक दाहिला मर्डर केस’ लॉस एंजिलिस के सबसे पुराने अनसुलझे मर्डर केसों में से एक है। अमेरिका में रहने वाली एलिजाबेथ शॉर्ट को ब्लैक दाहिला नाम दिया गया था। 15 जनवरी 1947 को उसकी हत्या हो गई थी। शार्ट की लाश कमर से आधी कटी हुई थी और शरीर के कई अंगों पर घाव थे। उसका मुंह कान तक चीरा हुआ था।

चौंकाने वाली बात ये थी कि तकरीबन 60 लोगों ने इस हत्या का जुर्म कबूला था, जिनमें से ज्यादातर मर्द थे। पर इनमें से किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया। यह अपने समय का चर्चित केस रहा था और इस पर ‘द ब्लू दाहिला’ नाम की फिल्म भी बन चुकी है।

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7. लेम की विचित्र हालतों में मौत

21 साल की एलिसा लेम ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी, वेंकेवर में एक स्टूडेंट थी। 19 फरवरी 2013 को उसकी लाश डाउनटाउन के सेसिल होटल के ऊपर वाटर टैंक में पाई गई। कर्मचारियों ने होटल के मेहमानों के पानी में बदबू आने की शिकायत के बाद टैंक की जांच की थी। सीसीटीवी की जांच में लेम को लिफ्ट से ऊपर जाते देखा गया था, जो शायद ठीक से काम नहीं कर रही थी।

फुटेज में उसे खुद से या किसी और से या किसी अदृश्य चीज से बात करते देख गया। वह बहुत परेशान लग रही थी। वीडियो के वायरल होने के बाद किसी ने लेम को मानसिक रोगी कहा, किसी ने वीडियो में छेड़छाड़ की बात कही। लेकिन यह केस सुलझाया नहीं जा सका। हालांकि, इस घटना से प्रेरित कई फिल्में बनाई गई हैं।

 

 

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8. हिंटरकैफेक फार्मस्टेड का हत्याकांड

हिंटरकैफेक जर्मनी के म्यूनिख से 70 किमी दूर स्थित जगह है। जर्मनी के इतिहास में इस इलाके को सबसे विचित्र आपराधिक घटनाओं के लिए जाना जाता रहा है। 31 मार्च 1922 को वहां रहने वाले छह किसानों की एक कुल्हाड़ी से हत्या कर दी गई। मरने वालों में एंड्रियास ग्रुबेर, उसकी पत्नी केजिला, उसकी विधवा बेटी विक्टोरिया और उसके दो बच्चे और उनकी मेड थी।

लेकिन चौंकाने वाली बात ये कही जाती है कि घटना के कुछ दिन पहले ही एंड्रियास ने अपने पड़ोसियों से बर्फ पर कुछ पैरों के निशान होने की बात कही थी। घटना के छह महीने पहले वहां काम कर रही एक मेड ने भी उस जगह को भुतहा बताया था और वह बहुत डरी हुई थी। हत्या के पीछे की असल गुत्थी अब तक नहीं सुलझ सकी।

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9. लोच झील का दैत्य

माना जाता है कि स्कॉटलैंड की ‘लोच झील’ के दैत्य का रहस्य झील में ही छुपा हुआ है। यह रहस्य 1933 में पहली बार तब सामने आया, जब लोगों ने झील में एक दैत्याकार जीव को देखा था। हालांकि, कुछ रिपोर्टों में इसे डायनासोर प्रजाति का एक विलुप्त जीव ‘प्लेसेसौर’ माना जाता रहा है, जो गहरे पानी में रहता है और कम ही सतह पर आता है।

रहस्यमय झील जहाँ से आज तक कोई वापस नहीं लौटा

बरमूडा ट्रायंगल के बारे में कौन नहीं जानता | आपको बहुत से ऐसे भारतीय लोग मिल जायेंगे जो बरमूडा त्रिकोण के बारे में अपने विचार और उससे सम्बंधित दुनिया भर की थ्योरी के बारें में पूरी तन्मयता से बतायेंगे लेकिन उनको उनके अपने ही देश में, एक ऐसी खूनी झील है जो अपने पास आने वाली हर चीज को निगल लेती है फिर वो चाहे कोई एक मनुष्य हो या पूरी सेना, इसके बारे में नहीं पता होगा | जी हाँ हम बात कर रहे हैं “ए लेक ऑफ़ नो रिटर्न” की | भ्रम हो अथवा यथार्थ, रहस्य का निर्माण अक्सर इतिहास के पात्र ही करते है | ये हमारा काम है कि हम उस पर अनुसन्धान करे और उसमे छिपे हुए सत्य की खोज करें, प्रकृति हमें इसी के लिए तो प्रेरित करती है |

बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत वर्ष के उत्तर-पूर्व में, भारत-बर्मा की सीमा के पास, पान्गसू दर्रे के क्षेत्र में एक रहस्यमय झील है | इस झील की लम्बाई 1.4 किलोमीटर तथा अपने सबसे चौड़े हिस्से में ये 0.8 किलोमीटर चौड़ी हो जाती है | ये झील वहां लीडो-रोड (पुराने समय में इसे स्टिलवेल रोड कहा जाता था) के दक्षिण-पश्चिम में कोई ढाई किलोमीटर की दूरी पर स्थित होगी | इस क्षेत्र में तान्गसा जनजाति रहती है | इस रहस्यमय झील को “ए लेक ऑफ़ नो रिटर्न” भी कहा जाता है | इस झील के आस-पास का भी इलाका, वीरान तथा बंजर है | इतनी खोजों के बाद भी आज तक इस झील के बारे में सही जानकारी प्राप्त नहीं सकी है | पशु-पक्षी भी इस झील से दूर-दूर तक नज़र नहीं आते |

lake-of-no-return2इस क्षेत्र से पास वाले गाँव में रहने वाले स्थानीय लोगों का कहना है कि कभी-कभी यहाँ आधी रात के आस-पास विचित्र, रहस्यमय तरीके की अस्पष्ट आवाज़े सुनाई पड़ती हैं | इससे सम्बंधित एक भयानक घटना उस समय की है जब द्वितीय विश्व युद्ध अपने चरम पर था | उन दिनों अंग्रेजो और जापानियों के संघर्ष के समय जापानी पूरे असम पर कब्ज़ा करना चाहते थे लेकिन जापानियों के दुस्साहसिक अभियान को पूरी तरह से तहस-नहस करने के लिए अंग्रेजों ने एक विशाल सेना, जिसमे सैन्य टुकड़ियों के अलावा तोपखाने व बख्तरबंद गाड़ियाँ भी थी, इसी रास्ते से बर्मा की ओर भेजीं |

लेकिन अचानक ही पूरा का पूरा सैन्य काफ़िला पान्गसू दर्रे के पास पहुँचते ही, रहस्यमय तरीके से ग़ायब हो गया | उधर दूसरी तरफ़ जापानियों की ओर से जो सेना असम पर कब्ज़ा करने के लिए भेजी गयी थी वो भी इस झील के पास पहुँचते ही ग़ायब हो गयी | किसी के समझ में नहीं आ रहा था कि दोनों तरफ़ की पूरी की पूरी सेनायें आखिर गयीं तो कहाँ गयीं? दोनों ही देशों की तरफ़ से अपनी-अपनी सेनाओं के ग़ायब होने के कारणों की खोज की गयी लेकिन किसी को कोई सफलता नहीं मिली | लापता सैनिकों की खोज में भेजे गए हेलीकॉप्टरों के चालक दल ने अपनी रिपोर्ट में बताया था की वो झील ऊपर से एक विशाल दलदल जैसी नज़र आती है |

pangsau_passइन सब घटनाओं में सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि इस झील की फोटो खींचने का प्रयास कई बार किया गया लेकिन उसमे भी किसी को कोई सफलता नहीं मिली | कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस झील से कुछ विचित्र रहस्यमय इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगे निकलती हैं जो फोटोग्राफिक कैमरों को रोक देती हैं इसकी फोटो खींचने से | कुछ शोधकर्ताओं, जिन्होंने इस झील का गहराई से अध्यन किया है, की राय है कि कदाचित यहाँ ब्रह्माण्ड के दूसरे ग्रहों एवं लोको से आये एलियंस का कोई संचार केंद्र (Base Station) हो तथा वो प्राणी नहीं चाहते हों की कोई मनुष्य यहाँ पहुँच कर उन पर अनुसन्धान करे और उनके बारे में किसी प्रकार की कोई जानकारी प्राप्त कर सके |

ये झील द्वितीय विश्व युद्ध में दो देशों की सेनाओं के लापता होने के समय जितनी रहस्यमयी थी उतनी ही आज भी है | समय कोई भी हो, रहस्य हमेशा उतना ही सम्मोहक बना रहता है जितना वो अपने सृजन के समय था, इतिहास की परतों पर जमीं धूल उसे धूमिल कर सकती हैं लेकिन मिटा नहीं सकती !